जीएसटी, यानी कि वस्तु एवं सेवा कर क्या है? ये हम आपको अपने मुख्य लेख (जीएसटी क्या है?) में बता चुके है। जीएसटी एक प्रकार का टैक्स होता है, जो कि माल और सेवा की आपूर्ति के बदले लिया जाता है। जैसा की आप जानते है की भारत देश में जीएसटी जुलाई 2017 में लागू हुआ था। इसके उपरांत इसके नियमो में अभी तक काफी बदलाव किए जा चुके हैं। इसी जानकारी को स्पष्ट करते हुए इस लेख में हम उन मुख्य नियमों की बात करेंगे, जो कि वर्ष 2019 से पहले लागू किये गए है। और कुछ नियम वह है जो की 1 अक्टूबर 2019 से लागू होंगे।
इस लेख में हम चर्चा करेंगे :
- 1 :- जीएसटी 2019 में मुख्य परिवर्तन
- 1.1 :- 40 लाख तक वार्षिक आय पर रजिस्ट्रेशन से छूट
- 1.2 :- 1.5 करोड वार्षिक आय तक ले सकते हैं कंपोजिशन स्कीम
- 1.3 :- कंपोजिशन स्कीम में अब सिर्फ सालाना रिटर्न जरूरी
- 1.4 :- केंद्र और राज्य के लिए अलग-अलग हैं जीएसटी
- 1.5 :- अलग-अलग जीएसटी के भुगतान का नियम
- 1.6 :- जीएसटी टैक्स स्लेब दरो में बदलाव
- 1.7 :- इनपुट क्रेडिट सिस्टम (उत्पादन सामग्री प्रणाली)
- 1.8 :- कारोबार की श्रेणी के अनुसार भरे जायेंगे रिटर्न
- 1.8.1 :- सामान्य करदाता श्रेणी के अनुसार भरे जाने वाले रिटर्न फॉर्म :-
- 1.8.2 :- जीएसटी कंपोजिशन स्कीम करदाता श्रेणी के अनुसार भरे जाने वाले रिटर्न फॉर्म :-
- 1.8.3 :- विदेशी करदाता श्रेणी के अनुसार भरा जाने वाला रिटर्न फॉर्म:-
- 1.8.4 :- निवेश वितरक सेवा करदाताओं श्रेणी के अनुसार भरे जाने वाले रिटर्न फॉर्म :-
- 1.8.5 :- ऑनलाइन शॉपिंग कंपनियो के करदाता श्रेणी के अनुसार भरे जाने वाला रिटर्न फॉर्म :-
- 1.9 :- रिवर्स जीएसटी का नियम
- 2 :- 1 अक्टूबर 2019 से जीएसटी के नियम
- 3 :- वर्तमान और नए जीएसटी रिटर्न सिस्टम के बीच अंतर
- 4 :- नए नियमों से जुड़े मुख्य तत्थ
जीएसटी 2019 में मुख्य परिवर्तन
जीएसटी के भारत देश में लागु होने के बाद से ही अब तक बहुत से प्रकरण हुए है जिनके आधार पर जीएसटी के वर्तमान नियमों के कुछ महत्वपूर्ण संशोधनों की आवस्यकता महसूस होने लगी थी। यह एक मात्र वजह है की जीएसटी के पूर्वनिर्धारित नियमों में परिवर्तन की मांग जायज हो गयी। तथा कुछ इस 1 अक्टूबर 2019 से जायज हो जायेंगे। इसी आधार पर जीएसटी नियमों में हुए बदलावों को वर्ष 2019 में प्रस्तुत किया जा रहा है। जीएसटी के नियमो में वर्ष 2019 से जो भी बदलाव हुए है वो निम्न प्रकार है –
1) 40 लाख तक वार्षिक आय पर रजिस्ट्रेशन से छूट
जीएसटी नियम के अनुसार पहले जिनके व्यवसाय की सालाना आय 20 लाख रुपए से अधिक थी। तो उनको जीएसटी में पंजीकरण करवाना अनिवार्य था। परन्तु अब नियमानुसार यह बढ़ कर 40 लाख रुपए हो गयी है। मतलब यह है की अब जिनके व्यवसाय की सालाना आय 40 लाख रुपए से अधिक है सिर्फ उन्ही को जीएसटी में पंजीकरण कराना होगा। और जिनकी प्रतिवर्ष आमदनी 40 लाख से कम है उन्हें पंजीकरण से राहत प्रदान कर दी गयी है। लेकिन यह सीमा सिर्फ मैदानी क्षेत्र के सामान्य राज्यों के लिए है। परन्तु पूर्वोत्तर एवं पहाड़ी राज्यों के कारोबारियों के लिए जीएसटी पंजीकरण से छूट की सीमा सालाना 20 लाख रुपये ही है। हालाँकि यह भी पहले यह 10 लाख रुपये थी।
2) 1.5 करोड वार्षिक आय तक ले सकते हैं कंपोजिशन स्कीम
जीएसटी के तहत कंपोजिशन स्कीम अपनाने की सीमा भी 1 करोड से बढकर 1.5 करोड रुपए वार्षिक आय हो गई है। पहले 1 करोड रुपए तक के वार्षिक आय पर ही ये स्कीम अपनाई जा सकती थी। पंरतु अब ये बढ़कर 1.5 करोड रुपए है। इसका मतलब यह कि अगर आपकी वार्षिक आय 1.5 करोड रुपए तक है तो आप कंपोजिशन स्कीम अपना सकते हैं।
3) कंपोजिशन स्कीम में अब सिर्फ सालाना रिटर्न जरूरी
कंपोजिशन स्कीम के तहत व्यापारियों को जीएसटी रिटर्न हर तिमाही को जमा करना होता था। परन्तु नए नियमों के अनुसार कंपोजिशन स्कीम अपनाने वालों को हर तिमाही पर रिटर्न भरने की आवस्यकता नहीं है। जीएसटी के इस नियम ने कंपोजिशन स्कीम अपनाने वालों को राहत दे दी है। अब ऐसे कारोबारियों को साल भर में सिर्फ एक ही बार सालाना रिटर्न दाखिल करना होता है। यह नियम 1 अप्रैल 2019 से लागू किया गया था।
4) केंद्र और राज्य के लिए अलग-अलग हैं जीएसटी
जीएसटी के पहले नियमो के अनुसार पूरे भारत देश में सिर्फ जीएसटी कर ही चलता था। केंद्र कर और राज्य कर में भी सामान रूप से जीएसटी कर लगता था। परन्तु जीएसटी के नये नियमो के अनुसार वस्तुओं की सप्लाई (मंगाने या भेजने) पर केंद्र और राज्य के लिए जीएसटी अब अलग-अलग चुकाना पडता है। या फिर किसी सौदे में केंद्र के लिए केंद्र जीएसटी (CGST) और राज्य के लिए राज्य जीएसटी (SGST), दोनों को मिलाकर (IGST के रूप में) भी वसूला जाता है।
उदाहरण के लिए, अगर किसी सौदे में 2 प्रतिशत जीएसटी चुकाया गया है तो यहां पर 1 % केंद्र जीएसटी के रूप में तथा 1 % राज्य जीएसटी के रूप में होता है।
- केंद्र शासित प्रदेशों के व्यापार के लिए राज्य जीएसटी की जगह पर केंद्र शासित जीएसटी (UTGST) चुकाना होता है।
- केंद्र व केंद्र शासित प्रदेशों के मध्य हुए किसी सौदे के लिए केंद्र जीएसटी और केंद्र शासित जीएसटी को मिलाकर वसूला जाता है।
- जब कोई सप्लाई दो राज्यों के बीच होती है तो वहां सीजीएसटी (CGST) और एसजीएसटी (SGST) की बजाय मिलाजुला के एक टैक्स आईजीएसटी (IGST) लगता है।
- यह IGST, सीजीएसटी और एसजीएसटी के कुल योग के ही बराबर होता है, उससे अधिक नहीं होता है।
5) अलग-अलग जीएसटी के भुगतान का नियम
जैसा की अभी आपको बताया जीएसटी के लागू होने से पूरे भारत में सामान रूप से जीएसटी लगती थी। परन्तु अब नियमो में परिवर्तन होने से वस्तुओं की आपूर्ति करने पर केंद्र और राज्य के लिए अलग-अलग रूप में जीएसटी भुगतान करना पडता है।
- राज्यान्तरिक आपूर्ति के लिए जीएसटी के भुगतान (Intra-State Supplies)
- अंतरराज्यीय आपूर्ति के लिए जीएसटी के भुगतान (Inter-State Supplies)
1. राज्यान्तरिक आपूर्ति के लिए जीएसटी के भुगतान –
जब कभी एक ही राज्य के दो व्यापारी आपस में किसी वस्तु या सामान का सौदा करते है तो इस स्थिति को राज्यान्तरिक स्थिति कहा जाता है। तथा इसके भुगतान के लिए किया गया भुगतान राज्यान्तरिक आपूर्ति कहलाता है।
इस स्थिति के अंतर्गत आने वाले भुगतान निम्नप्रकार से किये जाते है –
A. राज्य जीएसटी (SGST) का भुगतान :
जब एक की राज्य के दो व्यापारी आपस में कोई क्रय-विक्रय करते है, तो उनको भारत सरकार को राज्य जीएसटी (SGST) के रूप में टैक्स अदा करनी होगी। क्योकि यह सौदा राज्यान्तरिक स्थिति के अंतर्गत हुआ है। इस स्थिति में उन्हें राज्य सरकार को राज्य जीएसटी (SGST) अदा करनी होती है। जिस पर सिर्फ राज्य सरकार का हक़ होता है। इस पर केंद्र सरकार का कोई हक़ नहीं होता है। हालाँकि यह केंद को अदा की जाने वाली CGST के बराबर ही होती है।
B. केंद्रीय जीएसटी (CGST) का भुगतान :
राज्यान्तरिक स्थिति के अंतर्गत यदि कोई दो व्यापारी आपस में वस्तुओ की खरीद-फरोख्त करते है। तो सौदे के भुगतान के रूप में उनको भारत सरकार को भी टैक्स अदा करना होता है जिसे वह केंद्र जीएसटी (CGST) के रूप में अदा करते है। इस पर सिर्फ केंद्र सरकार का ही हक़ होता है। हालाँकि यह उतना ही वसूला जाता है जितना की उस सौदे पर लगने वाला राज्य जीएसटी (SGST) होता है।
C. केंद्र शासित प्रदेश (UGST) का भुगतान :
वह राज्य जो केंद्र द्वारा सीधे संचालित किये जाते है, उन राज्यों को केंद्र शासित प्रदेश कहा जाता है जब इन राज्यों के अंदर सौदा होता है, तो जीएसटी जमा करने के लिए राज्य जीएसटी (SGST) के रूप में केंद्र शासित प्रदेश (UGST) ली जाती है। तो उस सौदे पर भुगतान केंद्र शासित प्रदेश (UGST) तथा केंद्रीय जीएसटी (CGST) बराबर रूप से वसूला जाता है।
2. अंतरराज्यीय आपूर्ति के लिए जीएसटी के भुगतान –
जब दो अलग-अलग राज्य के व्यापारियों के बीच किसी वस्तु या सामान के लिये लेन-देन होता है। तो लेनदेन की इस प्रक्रिया को अंतरराज्यीय आपूर्ति कहा जाता है। इसके अंतर्गत आने वाला जीएसटी कर (टैक्स) भुगतान निम्नलिखित है :-
A. एकीकृत जीएसटी (IGST) :
जब किसी सामान या वस्तु का सौदा दो अलग-अलग राज्यो के व्यापारियों के मध्य होता है, तो उस सौदे पर बना टैक्स एकीकृत जीएसटी (IGST) के रूप में केंद्र सरकार को अदा किया जाता है। हालाँकि यह एकीकृत जीएसटी, राज्य जीएसटी और केंद्रीय जीएसटी के संपूर्ण योग के बराबर होती है। केंद्र सरकार के पास यह कर जमा होने के बाद में दो बराबर भागो में बांटा जाता है। जिसमें एक हिस्सा राज्य जीएसटी (SGST) तथा दूसरा हिस्सा केंद्रीय जीएसटी (CGST) होता है।
6) जीएसटी टैक्स स्लेब दरो में बदलाव
भारत सरकार ने भारत में जीएसटी की कुल पांच दरों में विभाजित किया था। भारत सरकार ने लोगो के लिए वस्तुओं के महत्व और जरूरत के हिसाब से कुल मिलाकर 5 टैक्स स्लैब दर बनाई थी। जीएसटी के तहत अलग अलग तरह की वस्तुओं और सेवाओं पर अलग-अलग दरों पर टैक्स लगाया जाता था। परन्तु अब भारत सरकार द्वारा जीएसटी की वर्तमान दरों में कुछ महत्वपूर्ण संशोधन किये गए है। इन संशोधनों के तहत जीएसटी दरों में जो भी परिवर्तन आये है, कुछ इस प्रकार है।
1) 0 प्रतिशत टैक्स स्लैब
0 प्रतिशत टैक्स स्लैब दर यह दर जीएसटी की प्रथम दर है इस दर में वह सामान और सेवाएं शामिल होती है, जो जीवन यापन के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। लेकिन अब इस दर के (स्लैब दरों में परिवर्तन के बाद) तहत वह वस्तु और सामान भी आता है, जो पहले 5%, 12%, 18% के तहत आता था। (जिनको हमारे द्वारा गहरा कर दिया गया है), जो की कुछ इस प्रकार है।
- अनाज
- नमक
- ताजे फल-सब्जियां
- ताज़ी सब्जियां
- बिना मार्का आटा
- गुड़
- दूध
- अंडे
- दही
- लस्सी
- खुला पनीर
- बिना मार्का प्राकृतिक शहद
- खजूर का गुड़
- नमक
- शिक्षा सेवाएं
- स्वास्थय सेवाएं
- बच्चो की किताब
- राखी
- साल पत्ती और उसके उत्पाद
- स्मारक सिक्के
- झाड़ू के लिए कच्चा माल
- सैनिटरी नैपकिन
आदि कुछ ऐसी वस्तुएं जब हम खरीदते हैं या हम इन वस्तुओं का उपयोग करते हैं, तो हमें किसी प्रकार का कर नहीं देना पड़ता है। क्योंकि ऐसी सभी वस्तुओं को भारत सरकार द्वारा जीएसटी की पहली दर 0% में रखा गया है।
2) 5 प्रतिशत का टैक्स स्लैब
5 प्रतिशत का टैक्स स्लैब दर दूसरे नंबर की है। इसके अंतर्गत वह वस्तुएं राखी गयी है जो की सामान्य जरूरत वाली वस्तुऐ है और दैनिक उपयोग में आती है। परन्तु जीएसटी दर में परिवर्तन के उपरांत अब इस दर के तहत कुछ उन वस्तुओ को भी रखा गया है जो की पहले 12%, व 18% के तहत आती थी। (जिनको हमारे द्वारा गहरा दर्शाया गया है) जो की निम्नलिखित है –
- ई-पुस्तकों की आपूर्तिचीनी
- चायपत्ती
- भुने हुई कॉफी बीन्स
- खाने योग्य तेल
- बच्चों के लिए मिल्ड फूड (हल्का भोजन)
- पैक्ड (डिब्बाबंद) पनीर
- सूती धागा
- फैब्रिक (कपडा)
- 500 रुपये तक की फुटवेयर
- न्यूजप्रिंट (अखबारी कागज)
- पीडीएस (सार्वजनिक वितरण प्रणाली) के तहत मिलने वाला केरोसिन
- घरेलू एलपीजी (गैस)
- कोयला
- हथकरघा दरी (हैंडलूम दरी)
- हस्तनिर्मित कालीन, वस्त्र तल, आवरण
- बुना हुआ टोपी
- कोटा पत्थर और समान पत्थर (पॉलिश के अलावा अन्य)
- समुद्री इंजन
- ई-पुस्तकों की आपूर्ति
- आम के सूखे टुकड़े
- सादा चपाती / रोटी
- डिब्बा बंद भोजन
आदि, इस प्रकार की वस्तुओ को जब हम खरीदते है। तो इन पर जीएसटी की 5 प्रतिशत की दर से टैक्स वसूला जाता है। क्योकि इस प्रकार की सभी वस्तुओ को भारत सरकार द्वारा 5 प्रतिशत की दर में रखा गया है।
3) 12 प्रतिशत का टैक्स स्लैब
12 प्रतिशत टैक्स स्लैब के अनुसार दैनिक जीवन में उपयोग आने वाला वह सामान या वस्तु रखी गयी है।जिनका प्रयोग मानव आवस्यकता पर निर्भर करता है, उसे इनकी आवश्कता है या नहीं? अर्थात यह कम अनिवार्यता वाली वस्तुऐ होती है। लेकिन नियम परिवर्तन के अनुसार इसमें कुछ वह वस्तु भी शामिल की गयी है, जो कि पहले 18% की दर के तहत आती थी। (उनको हमारे द्वारा मोटा लिखा गया है) जैसा की आप देख सकते है –
- मक्खन
- देसी घी
- काजू
- बादाम
- सॉस (टमाटर का)
- फलों का जूस
- नारियल पानी
- अगरबत्ती
- छाता
- मोबाइल
- कंप्यूटर
- मानव निर्मित फिलामेंट्स का सिलाई धागा
- सभी सिंथेटिक फिलामेंट यार्न, जैसे नायलॉन, पॉलिएस्टर, एक्रिलिक
- मूवी टिकट 100 रु से कम की हो या बराबर हो
- हाथ से संचालित रबर रोलर
- मल्टीमॉडल परिवहन की आपूर्ति
आदि। इस प्रकार की सभी वस्तुओ को 12 प्रतिशत टैक्स की श्रेणी में रखा गया है। जब भी हम इस प्रकार की कोई भी वस्तु या सामान को खरीदते है तो हम को 12 प्रतिशत टैक्स की दर से जीएसटी अदा करना होता है।
4) 18 प्रतिशत का टैक्स स्लैब
18 प्रतिशत स्लैब टैक्स दर जीएसटी की चौथी दर है। यह दर उन वस्तुओ पर लगया जाता है। जो की जरूरत और विलासिता के बीच की वस्तुऐ होती है। लेकिन जीएसटी दर परिवर्तन के दौरान कुछ वस्तुए जो 28% की दर में शामिल थी। उनको अब 18% में शामिल कर दिया गया है, यह सभी वस्तुएं निम्नलिखित है –
- मिनरल वाटर
- महंगे जूते
- औद्योगिक वस्तुएं
- हेयर ऑयल
- पास्ता
- कॉर्न फ्लेक्स
- जैम
- सूप
- आइसक्रीम
- टॉयलेट / फेशियल टिश्यू
- आयरन / स्टील
- साबुन
- टूथपेस्ट
- कैपिटल गुड्स (कच्चा माल)
- फाउंटेन पेन
- कंप्यूटर
- मानव निर्मित फाइबर
- पोस्टर रंग
- फर्श की टाइलें
- फाइल
- लेटर क्लिप
- लेटर कॉर्नर
- पेपर क्लिप
- पंप के लिए भागों
- वाशिंग मशीन
- खाद्य चक्की और मिक्सर
- वैक्यूम क्लीनर
- टॉयलेट स्प्रे
इस प्रकार की वस्तुऐ जरूरत और विलासिता के बीच की वस्तुऐ कहलाती है। यदि आप इन वस्तुओ का उपयोग करते है या खरीदते है। तो भारत सरकार द्वारा निर्धारित इन सभी सामानों पर 18 प्रतिशत की दर से टैक्स अदा करना होता है।
5) 28 प्रतिशत का टैक्स स्लैब
28 प्रतिशत की टैक्स स्लैब, जीएसटी की अंतिम दर है। हालाँकि इसमें कुछ खास परिवर्तन के तहत कोई नया समान जोड़ा तो नहीं गया है। पर इसमें से कुछ सामान हटाया जरूर गया है (जिन्हे ऊपर गहरे शब्दों में प्रदर्शित किया गया है) जिसके उपरांत इस श्रेणी में बची हुई वस्तुओं की सूची कुछ इस प्रकार है। इस दर के अनुसार विलासिता वस्तुऐ और नुकसानदेह चीजों आती है। उदाहरण के लिए –
- कार
- एसी
- परफ्यूम
- बालों का शैंपू
- मेकअप का सामान
- मोटरसाईकल
- सिगरेट
- कस्टर्ड पाउडर
- पटाखे या आतिशबाजी
और पढ़े :- जीएसटी की स्लैब दर से जीएसटी की गणना कैसे करें?
7) इनपुट क्रेडिट सिस्टम (उत्पादन सामग्री प्रणाली)
यह इनपुट क्रेडिट सिस्टम, जीएसटी नियमो के तहत अलग-अलग है। क्योंकि इस नियम के अनुसार – आप इनपुट क्रेडिट सिस्टम का प्रयोग करके जो टैक्स (खरीदारियों के साथ) पहले अदा कर चुके हैं। उसे अपनी वर्तमान टैक्स देनदारी से घटा सकते हैं। इसे छोटे से उदाहरण के साथ समझते हैं –
- चलिए हम मान लेते हैं कि आप किसी वस्तु के निर्माणकर्ता हैं।
- आप अपनी कंपनी में किसी वस्तु का निर्माण करके, माल बेचने के लिए तैयार करते है।
- वस्तु के निर्माण लिए आपने जो कच्चा माल खरीदा उस पर आपने 3200 रुपए जीएसटी अदा की।
- फिर आपने जो तैयार माल बेचा है, उससे आप पर जीएसटी टैक्स की देनदारी 4000 रुपए बनती है।
- तो आप इनपुट क्रेडिट सिस्टम के तहत अपनी 4000 रुपए की टैक्स देनदारी को चुकता करने के लिए 3200 रुपए की इनपुट क्रेडिट का इस्तेमाल कर सकते हैं।
- ऐसा करने से आपको अपनी कुल 4000 रुपए की टैक्स देनदारी में से पहले ही अदा किया जा चुका 3200 रुपए हटा देना चाहिए। जिससे सिर्फ 800 रुपए (बाकी बचे) ही अलग से चुकता करने होंगे।
8) कारोबार की श्रेणी के अनुसार भरे जायेंगे रिटर्न
इस नियम के तहत व्यापारियों को उनके वार्षिक आय तथा कारोबार की श्रेणी के अनुसार जीएसटी रिटर्न भरे जा सकते है। इसके लिए भारत सरकार ने रिटर्न फॉर्म अलग-अलग श्रेणी में रखे है। जो की निम्नवत है –
- सामान्य करदाता
- जीएसटी कंपोजिशन स्कीम करदाता
- विदेशी करदाता
- निवेश वितरक सेवा
- ऑनलाइन शॉपिंग कंपनिया (ई-कॉमर्स)
1. सामान्य करदाता श्रेणी के अनुसार भरे जाने वाले रिटर्न फॉर्म :-
और पढ़े :- जीएसटीआर 3बी कैसे भरें?
2. जीएसटी कंपोजिशन स्कीम करदाता श्रेणी के अनुसार भरे जाने वाले रिटर्न फॉर्म :-
3. विदेशी करदाता श्रेणी के अनुसार भरा जाने वाला रिटर्न फॉर्म:-
4. निवेश वितरक सेवा करदाताओं श्रेणी के अनुसार भरे जाने वाले रिटर्न फॉर्म :-
5. ऑनलाइन शॉपिंग कंपनियो के करदाता श्रेणी के अनुसार भरे जाने वाला रिटर्न फॉर्म :-
नोट :- व्यापारियों को उनके वार्षिक आय तथा कारोबार की श्रेणी के अनुसार जीएसटी रिटर्न भरे के लिए अलग-अलग श्रेणी में रखा गया है। उन फॉर्मो की अधिक जानकारी के लिए आप हमारे पेज जीएसटी रिटर्न कैसे भरे?पर जा सकते है।
9) रिवर्स जीएसटी का नियम
जीएसटी नियम के अंतर्गत एक नियम आता है, जिसे जीएसटी रिवर्स चार्ज कहते है इस नियम के अंतर्गत जब कोई पंजीकृत व्यापारी अपंजीकृत व्यापारी से खरीदारी करता है तो खरीदार को जीएसटी जमा करनी होती है। जबकि जीएसटी के अन्य नियम के अनुसार ऐसा नहीं होता है अन्य नियम के अनुसार जीएसटी विक्रेता जमा करता है। इस उलटी प्रकिया के कारण इसे जीएसटी रिवर्स चार्ज का नियम कहते है। लेकिन यह नियम कुछ विशेष स्थिति में कार्य करता है। जो की निम्नलिखित है –
- जब रजिस्टर्ड कारोबारी किसी गैर रजिस्टर्ड कारोबारी से सामान खरीदता है
- ई कॉमर्स ऑपरेटर्स की ओर से सेवा उपलब्ध कराने पर
- कुछ विशेष वस्तुओं और सेवाओं की खरीदारी पर
अधिक जानकारी के लिए पढ़ें – जीएसटी रिवर्स चार्ज क्या है?
1 अक्टूबर 2019 से जीएसटी के नियम
अभी तक हमने आपको बताया, की जीएसटी के वह नियम जिनमे 2019 में परिवर्तन आया लेकिन अब हम बात करते है जो की 1 अक्टूबर 2019 से लागु होंगे। क्योकि जीएसटी के नियमो में 1 अक्टूबर से कुछ बदलाव आने वाले है। तो जानिए नयी जीएसटी में क्या नया है :
- 31 वीं जीएसटी समिति के तहत यह निर्णय लिया गया है। कि करदाताओं के लिएजीएसटी में एक नई वापसी प्रणाली शुरू की जाएगी।
- जीएसटी के तहत करदाताओं को नया पंजीकरण करने में आसानी रहे इसके लिए जीएसटी रिटर्न सिस्टम में सरलीकृत रिटर्न फॉर्म होंगे।
- नई जीएसटी रिटर्न सिस्टम में जीएसटी एएनएक्स-1 (GST ANX-1) लागू होगा।
- यह मौजूदा जीएसटी रिटर्न सिस्टम जीएसटीआर-1 (GSTR-1) की जगह लेगा।
- नए सिस्टम में तीन मुख्य घटक (कंपोनेंट) होंगे। पहला मेन रिटर्न (फॉर्म जीएसटी रिटर्न-1) होगा
- और दो अनुलग्नक (फॉर्म जीएसटी एनेक्सर-1 और फॉर्म जीएसटी एनेक्सर-2) होंगे।
- 5 करोड़ से ज्यादा वार्षिक आय वाले कारोबारियों को मासिक और इससे छोटे कारोबारियों (जिनकी वार्षिक इनकम 5 करोड़ से कम है) को तिमाही रिटर्न भरना होगा।
- मौजूदा फॉर्म GSTR-1 और GSTR-3B क्रमशः अक्टूबर और दिसंबर से खत्म हो जाएंगे, जिनकी जगह GST ANX-1 और GST RET-1 ले लेंगे।
और पढ़े :- जीएसटी निल रिटर्न कैसे भरें?
वर्तमान और नए जीएसटी रिटर्न सिस्टम के बीच अंतर
वर्तमान जीएसटी रिटर्न सिस्टम | नए जीएसटी रिटर्न सिस्टम |
पूर्ववर्ती वित्तीय वर्ष में 1.5 करोड़ रुपये तक के कारोबार के साथ करदाताओं को छोटा माना जाता है, लेकिन जिनकी पूर्ववर्ती वित्तीय वर्ष में 1.5 करोड़ रुपये से ज्यादा है, उनको बड़े करदाता माना जाता है | पूर्ववर्ती वित्तीय वर्ष में 5 करोड़ रुपये तक का कारोबार करने पर करदाताओं को छोटा माना जाता है, और जिनकी पूर्ववर्ती वित्तीय वर्ष में 5 करोड़ रुपये से ज्यादा है उनको बड़ा करदाता माना जाता है |
करदाताओं की श्रेणी के आधार पर, कई रिटर्न फॉर्म भरे जाएंगे, जैसे – GSTR-1, GSTR-4, GSTR-5, GSTR-6, GSTR-7, इत्यादि। | करदाताओं की सभी श्रेणियों द्वारा दाखिल किया जाने वाला एक एकल सरलीकृत मुख्य रिटर्न फॉर्म GST RET-1 जिसमें 2 अनुलग्नक GST ANX-1 और GST ANX-2 हैं। |
इनपुट टैक्स क्रेडिट का दावा स्व-घोषणा के आधार पर किया जा सकता है। | आपूर्तिकर्ता द्वारा अपलोड किए गए चालानों के आधार पर इनपुट टैक्स क्रेडिट का दावा किया जा सकता है। |
करदाताओं को अपना पंजीकरण रद्द करने तक जीएसटी रिटर्न दाखिल करना होगा, भले ही पंजीकरण रद्द करने का आवेदन प्रस्तुतकिया गया हो | पंजीकरण को अब निलंबित कर दिया जाएगा, उन मामलों में जहां करदाता ने पंजीकरण रद्द करने के लिए आवेदन किया है, और इस अवधि के लिए रिटर्न की आवश्यकता नहीं है |
नए नियमों से जुड़े मुख्य तत्थ
- बड़े करदाता अक्टूबर और नवंबर 2019 से मासिक, पर GSTR-3S भर सकेंगे।
- छोटे करदाता अक्टूबर 2019 से फॉर्म GSTR-3B को भरना बंद कर सकते है, जबकि फॉर्म जीएसटी पीएमटी-08 भरना शूरु कर सकते हैं।
- छोटे करदाता अपना पहला जीएसटी रिटर्न-01 फॉर्म अक्टूबर 2019 की तिमाही से 20 जनवरी 2020 तक भर सकते हैं।
- जुलाई 2020 से सभी टैक्सपेयर फॉर्म जीएसटी रिटर्न-01 भर सकेंगे, जबिक GSTR-3B चरणबद्ध से हट जाएगा।