आपको पता है की भारत में, बैंकिंग क्षेत्र सबसे बड़े सेवा क्षेत्रों में से एक है। बैंकिंग छेत्र में सबसे पहले निम्न प्रकार के कर लगाए जाते थे। जिनसे की आम आदमी को काफी तकलीफों से होकर गुजरना पड़ता था। उसके बाद जीएसटी कानून आने पर, उन सभी करो को हटा के केवल एक टैक्स कर दिया गया। जिससे की आम आदमी को काफी हद तक राहत प्रदान हुई। इस लेख में हम बैंकिंग में जीएसटी के बारे में बताएँगे। बैंकिंग में जीएसटी क्या होता है? अथवा बैंकिंग में सेवाओं पर देना होगा जीएसटी? अथवा कुछ निम्न तथ्यों के बारे में विस्तार पूर्वक बात करेंगे।
इस लेख में हम चर्चा करेंगे :
बैंकिंग में जीएसटी का मतलब समझिये?
देशभर में 1 जुलाई से लागू हुआ वस्तु एवं सेवा कर व्यापार, उद्योगों के आलावा बैंक सेक्टर में भी अपना असर दिखा रहा है। बैंकिंग में जीएसटी लागू होने से एटीएम से पैसे निकलना, कैश जमा करना, डिमांड ड्राफ्ट करवाना, चेक बुक लेना महंगा हो गया है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक पहले बैंकिंग ट्रांजेक्शन पर 15 प्रतिशत टैक्स लगता था। जो जीएसटी लागू होने के बाद 18 प्रतिशत तक हो गया है। यह टैक्स बैंको द्वारा लगाए जा रहे वार्षिक शुल्क को प्रभावित भी करेगा। बैंकिंग व अन्य वित्त-संबंधी सेवाओं पर जीएसटी को लेकर कई तरह की खबरों के बीच अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड ने स्थिति पूरी तरह से स्पष्ट कर दी है। बोर्ड ने नोटिस जारी करके बताया है कि किस तरह की बैंक सेवाओं पर जीएसटी लगेगा और कौन सी सेवाएं जीएसटी से मुक्त रहेंगी। चलिए कुछ जरुरी बिंदुओं पर एक-एक करके नजर डालते है।
- कर की दर में वृद्धि का मतलब है, व्यक्तियों को बैंकिंग लेनदेन के लिए शुल्क के रूप में भुगतान किए गए प्रत्येक 100 रुपये के लिए 3 रुपये से अधिक का भुगतान करना होगा।
- अधिकांश बैंक अब अलग-अलग बैंक के एटीएम से नकद निकासी या एक शाखा से नकद निकासी पर लेनदेन शुल्क लागू करते हैं। जिसमे की पहले 5 लेनदेन मुफ्त होते हैं।
- बैंक शाखाएं एक-दूसरे को सेवाएं प्रदान करती हैं, जो जीएसटी के तहत कर योग्य होंगी (बाद में वे इनपुट टैक्स क्रेडिट का दावा कर सकती हैं)। लेकिन इससे कागजी कार्रवाई और परिचालन लागत भी बढ़ेगी।
- व्यापार उपभोक्ताओं के लिए अच्छी खबर यह है कि वे अपने व्यवसाय खातों पर भुगतान की गई बैंकिंग सेवाओं पर आईटीसी का दावा कर सकते हैं।
बैंकिंग सेवाओं पर देना होगा जीएसटी?
आपको पता होगा की जब आप किसी भी बैंक में अपना खाता खुलवाते है। अथवा लोन जैसी सेवाएं बैंक से लेते है तो कुछ सेवाएं आपको मुफ्त में प्रदान की जाती थी। पर जब से सेवाएं या सर्विसेज पर जीएसटी लगना शुरू हुआ है। तब से इन फ्री सेवाओं पर भी जीएसटी टैक्स लगता है। क्योकि ये सभी सेवाएं भी अब जीएसटी दायरे में आती है। ऐसी कुछ सेवाओं को हमने एक-एक करके नीचे विस्तार से जानने की कोशिश करते है।
1. लेट पेमेंट पर जीएसटी
अगर कोई भी व्यक्ति क्रेडिट कार्ड बिल का समय पर भुगतान नहीं करता है। तो बैंक इसके लिए आपसे देर से भुगतान (लेट पेमेंट) चार्ज वसूलता है। इसके चलते आपको लेट पेमेंट के साथ-साथ जीएसटी का भुगतान भी करना होगा। बैंक या क्रेडिट कार्ड कंपनिया नियत तारीख पर क्रेडिट कार्ड पेमेंट का भुगतान न करने पर लेट पेमेंट चार्ज लेती हैं। यह अलग अलग बैंकों में 500 रुपए से लेकर 1,000 रुपए तक होता है।
2. एटीएम (ATM) के इस्तेमाल पर जीएसटी
आपको पता होगा की एटीएम से एक माह में तय लिमिट से ज्यादा लेनदेन (ट्रांजैक्शन) करने पर प्रति ट्रांजैक्शन 10 रुपए से लेकर 25 रुपए तक चार्ज का भुगतान करना पड़ता है। इस चार्ज के साथ आपको जीएसटी का भुगतान भी करना होगा। उदाहरण के लिए, अगर आप भारतीय स्टेट बैंक के ग्राहक हैं तो आपके स्थान के हिसाब से महीने में 3 से 5 एटीएम ट्रांजैक्शन फ्री में कर सकते हैं। लेकिन अगर आप इससे अधिक लेनदेन करते हैं तो आपको इस पर प्रति ट्रांजैक्शन 10 से 20 रुपए जीएसटी टैक्स के साथ चुकाना होगा। अगर आप एसबीआई के एटीएम पर लिमिट से अधिक ट्रांजैक्शन करते हैं तो आपको प्रति ट्रांजैक्शन 10 रुपए और जीएसटी चुकाना होगा। वहीं अगर आप दूसरे बैंक के एटीएम से लिमिट से अधिक ट्रांजैक्शन करते हैं तो आपको प्रति ट्रांजैक्शन 20 रुपए तक जीएसटी का भुगतान करना होगा।
3. शुल्क (फीस) देकर चेकबुक लेने पर जीएसटी
जब आप किसी भी बैंक में अपना खाता खुलवाते है तो उसके साथ सभी बैंक एक तय सीमा तक निशुल्क चेक बुक प्रदान करते है। लेकिन अगर आप उस बैंक में एक से अधिक चेक बुक लेने पर आपको शुल्क देना होता है। ऐसे में शुल्क देते हुए चेकबुक या बैंक विवरण हासिल करने पर आपको उस शुल्क पर जीएसटी का भुगतान भी अनिवार्य होता है।
4. एग्जिट लोड पर वस्तु एवं सेवा कर
आपको पता होगा की किसी भी टैक्स सेविंग म्युचुअल फंड का लॉक इन पीरियड होता है। अगर आप लॉक इन पीरियड से पहले ही उसे बेच देते हैं तो इस स्थिति में आपको एग्जिट लोड के नाम से चार्ज देना होता है। अथवा इस शुल्क पर आपको जीएसटी भी चुकाना होगा।
5. लोन ट्रांसफर (ऋण तबादला) करने पर जीएसटी भुगतान
अगर आप अपने लोन को किसी दूसरे बैंक में ट्रांसफर करवाते हैं तो उसके लिए आपको ट्रांजैक्शन प्रोसेसिंग फीस देनी होती है। इस फीस पर अब आपको जीएसटी भी देना होगा।
6. ईएमआई चूक पर जीएसटी टैक्स
आपको पता होगा की किसी भी बैंक से लोन लेने पर उसकी मासिक ईएमआई बनती है। अगर उस ईएमआई को आपने समय पर नहीं चुकाया है तो अलग से कुछ चार्ज लगता है, लेकिन अब यह चार्ज भी जीएसटी के दायरे में आता है।
क्या बैंकिंग में जीएसटी का भुगतान करते हैं?
भारत में, अधिकांश बैंकिंग और वित्तीय सेवाएं सेवा कर के संपर्क में होती हैं, वर्तमान में, सेवा कर सभी शुल्क आधारित गतिविधियों पर लागू होता है, भूतकाल में यह दर 15 प्रतिशत की दर से लगाई जाती थी। जो की वर्तमान समय में अब वह दर 18 प्रतिशत तक पहुंच गयी है। जीएसटी के अधिग्रहण के बाद बैंकों को सभी शुल्क आधारित गतिविधियों के लिए जीएसटी का भुगतान करने की आवश्यकता है। ऋण पर, प्रतिभूतियों में व्यापार, विदेशी मुद्रा और फुटकर सेवाओं को भी जीएसटी के दायरे में आता है। लेकिन विश्व स्तर पर, बैंकों को जीएसटी से छूट दी गई है। भारत में, बैंक समाज के कमजोर वर्गों को भी सेवाएं प्रदान करते हैं, जिनके खाते सरकार के सामाजिक लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए वित्तीय समावेशन के लिए खोले गए है।
बैंकिंग में जीएसटी के लिए चुनौतीपूर्ण कदम?
बैंकिंग में जीएसटी टैक्स कानून के लिए कुछ चुनौतीपूर्ण कदम भी होते है। जैसे की बैंक के लिए जीएसटी नंबर जरुरी है की नहीं, अथवा किसी राज्य की बैंक के लिए पंजीकरण जरुरी है की नहीं आदि ऐसे चुनौतीपूर्ण कदमो के बारे में एक-एक करके विस्तार से जानने की कोशिश करते है।
1. राज्यवार पंजीकरण आवश्यकता
वर्तमान में, सभी बैंकों ने अपनी सभी शाखाओं के लिए सेवा कर कानूनों के तहत पंजीकरण को केंद्रीकृत कर दिया है। कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों (UT) में बैंकों की शाखाओं को अब जीएसटी प्रक्रिया के तहत अलग-अलग पंजीकरण की आवश्यकता होगी। जीएसटी के तहत, प्रत्येक राज्य के लिए अलग से सभी रिकॉर्ड बनाए रखने होंगे। यह एक ही समय में भारी और चुनौतीपूर्ण होगा। यदि किसी बैंक की एक राज्य में कई शाखाएँ हैं, तो उस राज्य की सभी शाखाओं के लिए केवल एक पंजीकरण आवश्यक है। इसलिए, सरकार को बैंकिंग क्षेत्र के बोझ को कम करने के लिए बैंकिंग क्षेत्र के लिए कुछ विशेष योजना प्रदान करनी चाहिए जो कि बड़े पैमाने पर अन्य उद्योगों से भिन्न होती है।
2. आपूर्ति का स्थान महत्वपूर्ण हो सकता है
जीएसटी आपूर्ति आधारित कर व्यवस्था का एक स्थान है। बैंक शाखाएं आमतौर पर लेनदेन का संचालन करती हैं, दोनों राज्यों के भीतर और बाहर इसलिए आपूर्ति की जगह निर्धारित करना आसान नहीं होगा। बैंक की आपूर्ति का स्थान, उन्हें यह तय करने की आवश्यकता है कि क्या भुगतान लेनदेन के प्रकार (इंट्रा-स्टेट या अंतर-राज्य) के आधार पर सीजीएसटी, एसजीएसटी और आईजीएसटी के खिलाफ है। उदाहरण के लिए, दो राज्यों में स्थित एक ही बैंक की दो शाखाओं के बीच वस्तुओं या सेवाओं (या दोनों) की अंतर-राज्य आपूर्ति भी आईजीएसटी के तहत होगी।
ध्यान दें :- बैंकिंग क्षेत्र में बड़ी संख्या में लेनदेन को ध्यान में रखते हुए, करदाताओं को अपने चालान में सीरियल नंबर और ग्राहक के पते का उल्लेख करने की आवश्यकता नहीं है।
3. बैंकिंग में जीएसटी द्वारा ब्याज का कराधान
वर्तमान कर व्यवस्था में, ब्याज पर कर नहीं लगता है। साथ ही, दुनिया भर की सरकारें ब्याज पर जीएसटी नहीं लगाती हैं। यदि ब्याज में जीएसटी को आकर्षित करने की उम्मीद नहीं है, तो इसका बैंकों द्वारा दावा किए गए इनपुट टैक्स क्रेडिट पर प्रभाव पड़ेगा।
4. लागू दर से जीएसटी का भुगतान करना
आज कल आपने देखा होगा की, बैंक सोने / चांदी जैसी वस्तुओं पर भी सौदा करती हैं, जिस पर जीएसटी दर लागू होने की उम्मीद होती है। इसलिए, बैंकों को विभिन्न उत्पादों पर उचित लागू दर के साथ जीएसटी का भुगतान करने में सावधानी बरतने की आवश्यकता है।
बैंकिंग में जीएसटी के दौर में कर्ज पर कितना असर पड़ेगा?
बैंक और अन्य वित्तीय संस्थान अपनी ऋण वृद्धि को बढ़ावा देने के लिए ऋण प्रदान करते हैं। कुछ लोकप्रिय ऋणों में एक व्यक्तिगत ऋण, गृह ऋण, कार ऋण, व्यवसाय ऋण आदि शामिल हैं। इन सभी ऋणों पर टैक्स दर लगभग 15 प्रतिशत थी। लेकिन जैसे ही जीएसटी लागू हुआ उसके बाद, दर में वृद्धि हुई और वह 18 प्रतिशत तक पहुंच गयी है। इस प्रकार अब बैंक से लोन लेना एक महंगा सौदा हो हो गया है। चूंकि अलग-अलग ऋणों में अलग-अलग चार्ज संरचनाएं हो सकती हैं, इसलिए उनमें से प्रत्येक का अलग-अलग अध्ययन करना बेहतर होगा।
एसबीआई ऑनलाइन के माध्यम से एनईएफटी के लिए लेनदेन शुल्क
- इतने रुपये तक के ऑनलाइन लेनदेन के लिए 10,000: रु 1+ जीएसटी 18% (1 रु पर)
- इतने रुपये से लेनदेन के लिए। 10,001 से 1,00,000: रु 2+ जीएसटी 18% (2 रु पर)
- इतने रुपये से लेनदेन के लिए। 1,00,001 से 2,00,000: रु 3+ जीएसटी 18% (3 रु पर)
- इतने रुपये से ऊपर के लेनदेन के लिए 2,00,000: रु 5+ जीएसटी 18% (5 रु पर)
एसबीआई बैंक शाखा के माध्यम से एनईएफटी के लिए लेनदेन शुल्क
- एसबीआई बैंक शाखा के लिए 10,000 रु। 2.50 + जीएसटी 18%
- रुपये से लेनदेन के लिए 10,001 से 1,00,000 रु। 5 + जीएसटी 18%
- रुपये से लेनदेन के लिए 1,00,001 से 2,00,000 रु। 15 + जीएसटी 18%
- रुपये से ऊपर के लेनदेन के लिए 2,00,000 रु। 25 + जीएसटी 18%
बैंकिंग में जीएसटी पर 1 अक्टूबर 2019 से लागू नए नियम?
1 अक्टूबर 2019 से देशभर में कई नए नियम लागू हो गए है। जिसका आम आदमी की जेब पर सीधा असर पड़ सकता है। जैसे की बैंकिंग, ट्रांसपोर्टिंग, जीएसटी रेट, इंजीनियरिंग टैक्स, प्लास्टिक के प्रयोग सहित कई चीजें बदल जाती हैं। इसके अलावा रसोई गैस की कीमतों में भी इसी दिन बदलाव किये गए। अगर आपने समय रहते इन नियमों पर ध्यान नहीं दिया तो आपका नुकसान होना तय है। नीचे हम जानेंगे की 1 अक्टूबर 2019 को बैंकिंग में जीएसटी के तहत होने वाले बदलावों के बारे में जानेंगे। एक-एक करके इनके बारे में जानते है।
1. भारतीय स्टेट बैंक में ये बदलाव हुए है?
देश के सबसे बड़े सरकारी बैंक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसीबीआई) भी एक अक्टूबर को नए नियम लागू कर दिए है। नए नियम के तहत बैंक की तरफ से निर्धारित मंथली एवरेज बैलेंस (MAB) को बनाए न रखने पर जुर्माने में 80 प्रतिशत तक की कमी आ जाएगी। अभी आपका बैंक अकाउंट अगर मेट्रो सिटी और शहरी इलाके की शाखा में है, तो आपको खाते में एवरेज मंथली बैलेंस क्रमश: 5,000 रुपए और 3,000 रुपए रखना होता है। इसके अलावा 1 अक्टूबर 2019 से एसबीआई के ग्राहक मेट्रो शहरों के एसबीआई एटीएम में से ज्यादा से ज्यादा 10 बार फ्री डेबिट ट्रांजेक्शन कर सकेंगे। जबकि, अन्य शहरों के एटीएम से ज्यादा से ज्यादा 12 फ्री ट्रांजेक्शन किया जा सकेगा।
2. ओबीसी बैंक में होगा बदलाव
ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स (OBC) ने रेपो रेट (रेपो दर) से जुड़े हुए नए फुटकर व एमएसई लोन उत्पाद प्रक्षेपण (लॉन्च) किए हैं। ये लोन 1 अक्टूबर 2019 से उपलब्ध हो गए है। एमएसई और रिटेल लोन के तहत ओबीसी बैंक द्वारा दिए जाने वाले सभी नए चलायमान रेट लोन रेपो रेट से जुड़ी ब्याज दर पर मिलेंगे। इन नए उत्पाद में रेपो रेट से जुड़े हुए होम लोन की ब्याज दर 8.35 फीसदी से शुरू होती है, जबकि एमएसई के लिए लोन की ब्याज दर 8.65 फीसदी से शुरू होती है।